`काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जाये ” , `छठी माई के घाटवा पे आजन बाजन’, `जल्दी उग आज आदित गोसाईं…’ जैसे भावविभोर कर देने वाले पारम्परिक छठ महापर्व के लोकगीतों के बीच रविवार शाम को शहर के विभिन्न छठ घाटों पर बिहार एवं पूर्वांचल के हजारों लोगों ने भगवान् भास्कर के डूबते स्वरुप को अर्घ्य देकर घर परिवार, समाज एवं देश के सुख समृद्धि एवं शान्ति तथा कोरोना महामारी से मुक्ति के लिए कामनाएं की। छठी मैया के मन को झंकृत कर देने वाली लोक गीतों के बीच पुरे शहर एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में 125 से अधिक छठ घाटों में नज़ारा बिलकुल भक्तिमय हो गया। इन घाटों पर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मालवांचल में सम्पूर्ण बिहार एवं पूर्वांचल उतर आया हो। आज दोपहर पश्चात छठ घाटों पर छठ उपासकों छोटे छोटे समूहों में आना शुरू हो गया और शाम 4 बजते बजते छठ व्रती महिलाएं, पुरुष मुँह प्रसाद से भरे बाँस की टोकरियाँ लेकर इन घाटों पर पहुँच चुके थे। छठी मैया के मनभावन लोक गीतों से सम्पूर्ण वातावरण में भक्ति एवं आस्था के रंग में लोग रचे नजर आ रहे थे और एक दूसरे को छठ महापर्व की शुभकामनाएं दे रहे थे।
जैसे ही भगवान् भास्कर अस्ताचल में समाने लगे, जल कुंड में खड़े व्रती महिलाओं एवं पुरुषों ने प्रसाद से भरी टोकरियों को अपने हाथों में लेकर सूर्यदेव को अर्घ्य देना प्रारम्भ किया। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात व्रतियों ने अपने परिवार, सम्बन्धियों के साथ प्रसाद लेकर पुनः अपने घरों को प्रस्थान किया। कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण कई श्रद्धालुओं ने अपने अपने घरों में भी कृत्रिम जलकुण्डों में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया तथा शहर, प्रदेश एवं देश को कोरोना महामारी के प्रकोप से मुक्ति की कामनाएं की ।
शहर के कई छठ पूजा आयोजन समितियों द्वारा सांध्य अर्घ्य के पश्चात रात्रि में भजन संध्या एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। बिहार की सुप्रसिद्ध लोकगायिका मैथिलि ठाकुर ने महू में छठ गीतों की आकर्षक प्रस्तुतियां दी।
आज उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा | सूर्य उपासना का यह पर्व सोमवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात समाप्त होगा।